उपलब्धियॉं

उ0प्र0 गन्ना शोध परिषद् की प्रमुख शोध उपलब्धियॉं

1. उत्तर प्रदेश में 1918 से अब तक गन्ने की कुल 216 प्रजातियॉं खेती हेतु स्वीकृत की जा चुकी हैं। वर्तमान में उ0प्र0 में सामान्य खेती हेतु कुल 54 प्रजातियॉं स्वीकृत हैं जिनमें से 26 प्रजातियॉं शीघ्र पकने वाली हैं। विभाग द्वारा केवल स्वीकृत प्रजातियों का ही बीज वितरित किया जायेगा।
2. गन्ना जर्मप्लाज्म की कुल 526 संततियॉं जिनमें सैकेरम आफिसिनेरम, सैकेरम स्पोन्टैनियम, सैकेरम साइनेन्स, सैकेरम रोबस्टम, सैकेरम बारबेरी, भारतीय एवं आयातित व्यवसायिक संकर प्रजातियॉं सम्मिलित हैं, एकत्रित की गयी हैं जिनकी आनुवांशिक शुद्धता बनाये रखते हुये शोध प्रक्षेत्र पर संरक्षित किया गया है तथा आवश्यक आंकड़े एकत्रित किये जा रहे हैं ताकि भावी संकरण कार्य में इन्हें प्रयुक्त किया जा सके।
3. वर्ष 1976 में गन्ना संकरण हेतु ’’माडीफाइड लैन्टर्न’’ विधि विकसित की गयी जिससे गन्ना प्रजनन के इतिहास में एक नये युग का सूत्रपात हुआ।
4. संकरण उपरान्त प्राप्त संकर बीज (फ्लफ) से सीडलिंग उगाने हेतु ’यू0पी0 मैथड आफॅ सीडलिंग रेजिंग’ विधि विकसित की गयी जिसके द्वारा बिना ग्लासहाउस के खुले वातावरण में संकर बीज द्वारा सीडलिंग उगाना सम्भव हो सका।
5. सीडलिंग अवस्था में ही काना रोग रोधिता हेतु परीक्षण की विधि विकसित की गयी जिससे न केवल प्रजातीय विकास कार्यक्रम में तेजी आई बल्कि इसके लागत मूल्य में भी सार्थक कमी आयी।
7. गन्ने के विभिन्न ऊतकों यथा–लीफशीथ, शूट टिप, मेरिस्टेम, बडचिप इत्यादि से ऊतक सम्वर्धन विधि द्वारा पौधों के सम्वर्धन हेतु प्रोटोकाल विकसित किये गये।
8. गन्ने की नवीन विकसित प्रजातियों का माइक्रोप्रोपेगेशन विधि द्वारा सम्वर्धन करने के उपरान्त प्रमाणित बीज गन्ना विभिन्न चीनी मिलों को उपलब्ध कराया जा रहा है।
9. सैलुलोजयुक्त कार्बनिक पदार्थों (गन्ना की पत्ती, बैगास, प्रेसमड, स्पेन्टवाश, कूड़ा–करकट) आदि के विघटन हेतु प्रभावी जीवाणुओं की जॉंच की गयी। परिणामत: ट्राइकोडरमा स्पीशीज को सर्वाधिक उपयुक्त पाया गया। इस जीवाणु का आर्गेनोडीकम्पोजर के नाम से व्यवसायिक स्तर पर उत्पादन करके विभिन्न चीनी मिलों को उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि मिलों से पर्याप्त मात्रा में निकलने वाले सह-उत्पाद ’प्रेसमड’ की कार्बनिक खाद के रूप में उपयोगिता सुनिश्चित करायी जा सके।
10. नत्रजन स्थिरीकरण (एजोटोबैक्टर) एवं फास्फोरस घोलक (पी0एस0वी0) कल्चर जैविक खादों का व्यापक स्तर पर उत्पादन किया जा रहा है जिनका प्रयोग प्रेसमड द्वारा निर्मित कार्बनिक खादों के ’एनरिचमेन्ट’ तथा फसलोत्पादन वृद्धि के लिये खेत में डालने हेतु प्रयुक्त किया जा रहा है।
11. प्रेसमड तथा अपशिष्ट कार्बनिक पदार्थों द्वारा केंचुआ खाद उत्पादन की विधि विकसित की गयी। यह विधि प्रदेश के अनेक चीनी मिलों द्वारा अपनाई जा रही है।
12. ट्रेंच विधि के साथ अन्त: फसली अपनाकर सामान्य विधि के साथ अन्त: फसली की तुलना में 25–30 प्रतिशत तक उपज में वृद्धि एवं 0.5 यूनिट शर्करा में वृद्धि होती है। इस प्रकार संशोधित ट्रेंच विधि से लगभग रु0 40,000/हे0 अतिरिक्त शुद्ध लाभ प्राप्त होता है। अत: यह विधि गन्ना कृषकों एवं चीनी मिलों दोनों के लिये उपयोगी सिद्ध हुई है तथा प्रदेश के विभिन्न चीनी मिलों द्वारा अपनाई जा रही है।
13. प्रतिवर्ष नवीन प्रजातियों का लगभग 2.0 लाख कुन्तल ब्रीडर सीड उत्पादित कर विभिन्न गन्ना विकास परिषदों/चीनी मिलों पर आधार पौधशालाओं की स्थापना हेतु वितरण किया जा रहा है।