कब क्या करें

गन्ना कैलेण्डर

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जनवरी

1 आगामी बसंतकालीन गन्ना बुआई हेतु आवश्यक तैयारी करें।
2 बसन्तकालीन गन्ना बुवाई हेतु चयनित प्लाट में पोषक तत्वों का स्तर जानने तथा उसके अनुसार खाद एवं उर्वरको का प्रयोग किये जाने हेतु उस प्लाट की मिट्टी जॉच हेतु गन्ना शोध केन्द्र, कृषि विज्ञान केन्द्र अथवा अन्य मृदा विश्लेषण प्रयोगशाला में भेज दें।
3 संस्तुति किस्म एवं स्वस्थ गन्ना बीज की उपलब्धता हेतु निकटवर्ती शोध केन्द्र के पौधशालाओं/चीनी मिल केमाध्यम से सुरक्षित कर लें। (उत्तर प्रदेश के लिए क्षेत्रवार संस्तुित किस्मों की सूची दी गई हैं)

फरवरी

1 बसंतकालीन गन्ने की बुवाईः
2 उत्पादन लागत व समय की बचत तथा अच्छे जमाव के लिए डीप फरो कटर-प्लान्टर यंत्र द्वारा बुआई करें।
3 अधिक उपज के लिए ट्रेन्च विधि/ भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित ‘‘पेयर्ड-रो’’ बुआई यंत्र द्वारा बुआई करें।
4 स्वस्थ एवं ताजा गन्ने के 2 अथवा 3 ऑख के पैड़ों को बीजोपचार हेतु कार्बेन्डाजिम (बाबस्टीन) 112 ग्राम को माध्यम से सुरक्षित कर लें। (उत्तर प्रदेश के लिए क्षेत्रवार संस्तुित किस्मों की सूची दी गई हैं)
5 112 ली. पानी (प्रति हे) में घोल कर 5 मिनट तक उपचारित करने के पश्चात बुआई करें।
6 बुआई से पहले खेत की तैयारी के समय 10 कि.ग्रा. ट्राइकोड्रमा एवं एसीटोबैक्टर युक्त प्रेसमड/गोबर की खाद (10 टन/हे0) का प्रयोग अवश्य करें। ट्राइकोड्रमा एवं एसीटोबैक्टर कल्चर प्रमाणिक स्रोतों से ही प्राप्त करंे।
7 दीमक एवं प्ररोह व जड़ बेधक कीटों से बचाव हेतु नालियों में गन्ने के टुकडे के ऊपर प्रिफोनिल 20 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से अथवा क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. 5 ली. 1875 पानी में घोलकर हजारे से पैडो के ऊपर डालकर 2-3 से.मी. मिट्टी से ढ़क देना चाहिये।
8 यदि मृदा पी.एच. 7.5 से ज्यादा हो, तो इमीडाक्लोरप्रिड 17.8 एस.एल. 350 मिली0/हे0 का प्रयोग अधिक प्रभावी होता है।
9 खर-पतवार के प्रभावी नियंत्रण हेतु संस्तुति शाकनाशियों का प्रयोग गन्ना बुआई पश्चात् अविलंब करें।
10 नव रोपित शरदकालीन गन्ने में नत्रजन की पहली ट्रापडेसिंग हेतु 125 कि.ग्रा प्रति हे. की दर से सिंचाई के पश्चात लाइनों में बुरकाव करें।
11 शरद कालीन रोपित फसल में मध्य फरवरी में चोटी बेधक कीट की पहली पीढ़ी के प्रौढ़ कीट (सफेद तितली) को नष्ट करने के लिए खेत में फेरोमोन टैªप समान दूरी पर 25 ट्रैप/हे0 लगायें। तितली प्रकट होने के एक सप्ताह बाद पत्तियों के पृष्ठ भाग पर पाये जाने वाले नारंगी-भूरा रंग के अंड समूहों को नष्ट कर दें।

मार्च

1 बसंतकालीन गन्ना बुआई
2 बसंतकालीन गन्ना बुआई हेतु मार्च माह सर्वोत्तम है। अतः इस माह में बुआई अवश्य पूरी कर लें।
3 अपने क्षेत्र के लिए संस्तुित किस्मों की ही बुआई करें। (उत्तर प्रदेश के लिए क्षेत्रवार संस्तुित किस्मों की सूची दी गई हैं)
4 नव रोपित शरदकालीन गन्ने में सिंचाइर्, खाद, उर्वरक का प्रयोग एवं गड़ाई करना सुनिश्चित करें।
5 गन्ने मंे खरपतवार नियंन्त्रण हेतु कस्सी, फावडे़ या कल्टीवेटर से गुड़ाई करें श्रमिकों के अभाव में रासायनिक नियन्त्रण हेतु मैट्रीब्युजीन (70 प्रतिशत) 500 ग्राम तथा 2-4 डी. (58 प्रतिशत) 2.5 ली. प्रति हे. की दर से 1000 लीटर पानी मेें घोल बनाकर छिड़काव करने से सकरी तथा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का नियन्त्रण होता हैं।
6 नव रोपित शरदकालीन गन्ने मंे अकुंर बेधक से ग्रसित पौधों को जमीन की सतह से काटकर निकाल दें।
7 पेड़ी व नवरोपित शरदकालीन गन्ने में यदि कंडुआ (स्मट) रोग का संक्रमण हो तो ग्रसित पौधों को निकालकर नष्ट करें। रोग ग्रसित गन्ने के चाबुक को पॉलीथीन की थैली से ढककर ही कटाई करें, जिससे रोग के काले रंग का चूर्ण फैल नहीं पाये।
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अप्रैल

1 बसंतकालीन गन्ने के पूर्ण जमाव के पश्चात् यदि पंक्तियों में रिक्त स्थान (60 सें0मी0 से अधिक) हो तो वहाँ 2 या 3 आँख के टुकड़ों द्वारा रिक्त स्थानों की भराई कर दें। इसी समय खेत की गुड़ाई कर दें तथा इसके एक सप्ताह बाद सिंचाई कर दें।
2 शरदकालीन गन्ने में बेधक कीटों से बचाव हेतु क्लोरेन्ट्रेनिलिप्रोल (18.5 एस.सी) 375 मि.ली. प्रति हे. की दर से अपै्रल के अन्तिम सप्ताह मंे 1000 ली. पानी में घोल बनाकर गन्ने की जड़ो के पास डेªन्चिंग कर 24 घण्टें के अन्दर सिंचाई कर दें।
3 खरपतवार नियन्त्रण हेतु कस्सी, फावडे या कल्टीवेटर से गुड़ाइ करें। श्रमिकांे के अभाव मंे रासायनिक नियन्त्रण हेतु संकरी पत्ती वाले खरपतवारों का नियन्त्रण हेतु मैट्रीब्युजीन (70 डब्लू. पी.) 500 ग्राम तथा चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों हेतु 2-4 डी. (58 प्रतिशत ) 2.5 ली. को 1000 ली. पानी मे मिलाकर छिड़काव करें तथा मोथा घास की अधिक प्रचुरता की स्थिति में हालोसल्फयुरान मिथाइल (75 प्रतिशत) घुलनशील दाना 90 ग्राम तथा मैट्रीब्युजीन (70 डब्लू. पी.) 750 ग्राम प्रति हे. 1000 ली. पानी मंे घोलकर छिड़काव कर दें।
4 इसी माह में गन्ने की पेड़ी व बावक फसलों में नत्रजन की एक-तिहाई मात्रा उचित नमी स्तर पर टॉप ड्रेसिंग कर दें।
5 सभी बेधक कीटों से बचाव हेतु फेरोमोन टैªप्स लगायें। टैªप्स पेस्ट कन्ट्रोल ऑफ इण्डिया के यहाँ उपलब्ध है।
6 इस समय खेतों में सभी रोगों के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। अतः खेत का नियमित निरीक्षण अनिवार्य है। रोग ग्रसित पौधों को खेत से निकालकर नष्ट कर दें।
7 रोगों के लक्षणः
8 कंडुवा (स्मट)ः गन्ने के सिरे पर काली चाबुक जैसी संरचना दिखाई देगी।
9 पर्णदाह (लीफ स्कॉल्ड)ः नव-जनित पत्तियों में मध्य शिरा के समांतर सफेद धारियाँ दिखाई देंगी, पत्तियाँ बाद में सूखने लगेंगी।
10 घासी प्ररोह (ग्रासी शूट)ः पौधा घास जैसा दिखाई देगा एवं सभी पत्तियाँ सफेद हो जाती है।
11 अप्रैल के अंतिम सप्ताह में खेत में पाइरिला दिखाई देने लगेगा। इसके नियंत्रण के लिए निचली पत्तियों के पृष्ठ भाग में धवल सफेद अंड समूह दिखाई देंगे ऐसी पत्तियों को काटकर नष्ट करें।
12 इसी माह पेड़ी फसल में काला चिटका (ब्लैक बग) का प्रकोप होता है, जिससे फसल की पत्तियाँ पीली पड़ने लगती है। ऐसी अवस्था में 3 प्रतिशत यूरिया एवं प्रोफेनोफास 40 प्रतिशत $ साइपर 4 प्रतिशत 750 मि.ली./हे. 650 ली. पानी में घोलकर कट नाजिल से छिड़काव करें।

मई

1 गन्ने की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें तथा अधिक पानी देने से बचें। प्रत्येक सिंचाई के बाद गुड़ाई करें। नत्रजन की संस्तुत मात्रा से ज्यादा न डालें।
2 फसल सुरक्षा हेतु अप्रैल माह में वर्णित कार्यक्रम इस माह में भी अपनायें।
3 पेड़ी गन्ने में अधिक व्याँत की अवस्था में गन्ने की पंक्तियों में मिट्टी चढ़ाना आवश्यक है। मिट्टी टैªक्टर चालित यंत्रों से चढ़ाना लाभदायक है।
4 चोटी बेधक कीट के नियंत्रण हेतु ट्रैप्स लगायें। यदि सफेद तितलियाँ टैªप्स में आने लगें तो खेत में क्लोरेन्ट्रेनिलिप्रोल 18.5 एस.सी. 375 मि.ली./हे0 कीटनाशक का घोल बनाकर नैपसैक स्प्रेयर से गन्ने की लाइन को ड्रैंन्चिग के उपरान्त सिंचाई करें।
5 गन्ने की फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें तथा अधिक पानी देने से बचें। प्रत्येक सिंचाई के बाद गुड़ाई करें। नत्रजन की संस्तुत मात्रा से ज्यादा न डालें।
6 फसल सुरक्षा हेतु अप्रैल माह में वर्णित कार्यक्रम इस माह में भी अपनायें।
7 चोटी बेधक कीट के नियंत्रण हेतु ट्रैप्स लगायें। यदि सफेद तितलियाँ टैªप्स में आने लगें तो खेत में क्लोरेन्ट्रेनिलिप्रोल 18.5 एस.सी. 375 मि.ली./हे0 कीटनाशक का घोल बनाकर नैपसैक स्प्रेयर से गन्ने की लाइन को ड्रैंन्चिग के उपरान्त सिंचाई करें।

जून

1 संस्तुत नत्रजन की शेष मात्रा मध्य जून तक उचित नमी पर अवश्य डाल दें। अच्छा होगा यदि नत्रजन गन्ना पौधों के समीप कूड़ों में डालकर मिट्टी चढ़ायें।
2 आवश्यकतानुसार सिंचाई एवं गुड़ाई करें। अधिक सिंचाई से बचे।
3 पूर्व माह की तरह इस माह में भी रोग व कीट ग्रसित पौधों को काटकर नष्ट कर देें। जिन क्षेत्रों में सफेद गिडार के प्रकोप की आशंका है वहाँ पर प्रौढ कीट (बीटल) के नियंत्रण हेतु सामुदायिक स्तर पर जगह-जगह भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित फेरोमोन युक्त प्रकाश ट्रैप्स लगायें। इस तरह एकत्रित कीटों को नष्ट कर दें। ट्रैप्स की अन-उपलब्धता की दशा में आस-पास के पेड़ों पर बैठे हुए कीटों को झाड़कर एकत्रित कर नष्ट कर दें।
4 वर्षा न होने की स्थिति में अथवा सूखे की अवस्था में इथरल 12 मि.ली. को 100 लीटर पानी में घोलकर पत्तियों में छिड़काव करें।
5 अगर हरी-खाद फसल की बुआई करनी हो तो जून के अंत में बुआई कर दें।

जुलाई

1 इस माह में गन्ने में मिट्टी चढ़ाना अति आवश्यक है।
2 इस माह में बेधक कीटों के नियंत्रण हेतु 50,000 ट्राइकोग्रामा अंड युक्त ट्राईकोकार्ड प्रति हे0 लगायें। ये कार्ड टुकड़ों में काटकर पत्तियों की निचली सतह पर नत्थी कर दें। यह प्रक्रिया 10 दिन के अंतराल पर अक्टूबर माह तक जारी रखें।
3 इसके अतिरिक्त यदि संभव हो तो कोटेशिया फ्लेविप्स (500 व्यस्क मादा कीट/हे0) एवं आइसोटीमा (125 व्यस्क मादा कीट/हे0) खेतों में बीचों बीच छोड़ दें।
4 पायरिला (फुदका) कीट के नियंत्रण के लिए इपीरिकैनिया परजीवी के ककून अथवा अंड समूह जो खतों में उपलब्ध होता है, को समान रूप से खेत में वितरित कर दें ताकि समान रूप से फैल जायें। पहचानः- ककून गोलाकार सफेद रंग के एवं अंड समूह चटाईनुमा काले रंग के होते हैं, ये दोनों पत्तियों के पृष्ठ भाग पर पाये जाते हैं।
5 रोग ग्रसित पौधों को खेत से जड़ सहित निकालकर नष्ट कर दें तथा रिक्त हुए स्थान पर ट्राईकोडर्मा का बुरकाव कर दें।
6 लाल सड़नः ग्रसित गन्ने की अगोले की तीसरी-चौथी पत्तियाँ एक किनारे अथवा दोनों किनारों से सूखना प्रारम्भ हो जाती हैं, फलस्वरूप धीरे-धीरे पूरा अगोला सूखने लगता है।
7 गन्ने में पोक्का बोइंग रोग का प्रकोप इसी माह में देखा जाता है जिसके उपचार हेतु कापरऑक्सीक्लोराइड 0.2 प्रतिशत या बावस्टीन का 0.1 प्रतिशत घोल का 15 दिन के अन्तराल पर दो छिड़काव करें।

अगस्त

1 गन्ने की बँधाई कर दें।
2 यदि आवश्यक हो तो खेत से पानी निकालने की व्यवस्था करें।
3 कीट एवं रोग नियंत्रण के लिए जुलाई में सुझाए गए कार्यक्रम को दोहरायें।
4 अधिक वर्षा के अवस्था में जल निकास की व्यवस्था करें।
5 पोक्का बोइंग रोग के लक्षण दिखने पर गत माह की भॉति नियन्त्रण करें।
6 जून जुलाई में बोये गये ढैचा फसल को अगस्त के अन्त में पलटाई कर मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करे।
7 गन्ने की लाल सड़न रोग के प्रारम्भिक लक्षण जिसमें उपर से तीसरी अथवा चौथी पत्ती सूखना प्रारम्भ होती है, इसी माह में दिखते है। एसे दिखने पर तुरन्त निकटवर्ती गन्ना शोध केन्द्र को सूचित करें।

सितंबर

1 गन्ने की सूखी पत्तियाँ निकाल कर लाइनों के बीच में बिछा दें तथा थानों की बँधाई कर दें।
2 वर्षा ऋतु में बोई गई हरी खाद को पलटकर मिट्टी में मिला दें।
3 यदि आवश्यक हो तो फसल सुरक्षा के लिए जुलाई में सुझाए गए कार्यक्रमों को ही दोहरायें।
4 यदि ऊली माह (ऊली एफिड) दिखाई दें तो इसके परजीवी डाइफा कीट के 1000 गिडार/हे0 की दर से खेत में उपयोग करें।
5 अधिक पैदावार हेतु ट्रेन्च विधि से गन्ने की बुवाई करें, इसमें ट्रेन्च ओपनर द्वारा 25-30 से.मी. गहरी तथा 30 से.मी. चौडी नाली बनाकर मृदा जॉच अथवा दी गयी खादीय संस्तुति के अनुसार उर्वरकों को नालियों में डालकर गन्नेे के दो ऑख के पैड़ों को दोहरी पंक्ति विधि से इस प्रकार बुवाई करनी चाहिए कि एक मीटर मंे दो ऑख के 10 से 12 पैडें आ जायें।

अक्टूबर

1 शरदकालीन गन्ने बुआई की तैयारी करें। संस्तुत प्रजातियों के स्वस्थ बीज की उपलब्धता सुनिश्चित कर लें। बीज पौधशाला से ही लें। जहाँ तक संभव हो पेड़ी गन्ने का बीज प्रयोग में न लायें।
2 बुआई करते समय ट्राईकोडर्मा युक्त प्रेसमड (5 टन/हे.) या गोबर की खाद (10 टन/हे.) का प्रयोग अवश्य करें।
3 उर्वरकों की संस्तुित मात्रा से नत्रजन की एक तिहाई मात्रा, पोटाश व फॉस्फोरस की पूरी मात्रा बुआई के समय कूँड़ों में डालें।
4 दीमक एवं प्ररोह व जड़ बेधक कीटों से बचाव हेतु नालियों में गन्ने के टुकडे के ऊपर प्रिफोनिल 20 कि.ग्रा. प्रति हे. की दर से अथवा क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. 5 ली. 1875 पानी में घोलकर हजारे से पैडो के ऊपर डालकर 2-3 से.मी. मिट्टी से ढ़क देना चाहिये। बुआई के समय दीमक से बचाव हेतु क्लोरफायरीफॉस (6.25 ली0/हे0) का प्रयोग अवश्य करें।
5 खड़ी फसल को चूहांे से बचाव हेतु ब्रोमोडाइलान अथवा जिंक फॉस्फाइड दवा को आटे में गोलियाँ बनाकर चूहों के बिलों के पास या समीप रख दें। इस दवा का प्रयोग करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि बिल में चूहे हैं या नहीं। इसके लिए पहले दिन सभी बिल कां मिट्टी द्वारा बंद कर दें। अगले दिन खुले हुए बिलों में चूहा होने की संभावना है। इन्हीं बिलों में दवा मिश्रित गोलियाँ रखें।
6 विलम्बित शरदकालीन बावक गन्ने की बुवाई हेतु इस माह में एस.टी.पी. अथवा पॉली बेग विधि से नर्सरी तैयार कल लेना चाहिए।

नवंबर

1 शरदकालीन में बोयी गयी गन्ने की फसल के साथ अन्तःफसल की देखभाल एवं आवश्यक सस्य क्रिया करें।
2 सप्लाई टिकट गन्ने की परिपक्वता के अनुसार जारी किये जाते हैं, जिसमें सर्वप्रथम शरदकालीन अगेती पेड़ी, सामान्य पेड़ी, अस्वीकृत पेड़ी, शरदकालीन अगेती पौधा, बसन्तकालीन पौधा एवं अस्वीकृत पौधा के क्रम में पर्चियाँ लगी होती हैं, इसलिए जारी पर्चियों के अनुरूप गन्ने की कटाई करें, जिससे पूर्ण परिपक्वता की स्थिति में उपादन अधिक प्राप्त होता है।
3 शरदकालीन गन्ने की दो लाइनों के बीच, गेहूँ की दो लाइन की बुवाई कर उपज प्राप्त की जा सकती है।
4 देर से काटी गयी धान की फसल के उपरान्त खेत खाली होने पर पूर्व में तैयार पालीबैग/एस.टी.पी. नर्सरी से पौधें को रोपित कर अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती हैं।
5 खड़ी फसल में आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।
6 मिल में भेजने योग्य गन्ने की कटाई जमीन की सतह से करें।

दिसंबर

1 शरदकालीन गन्ना काटने के बाद जिस खेत में पेड़ी रखनी हो गन्ने की ठूँठों के किनारे सर्दी का दुष्प्रभाव रोकने के लिए ताजा प्रेसमड (10 टन/हे.) की दर से ठॅूठों के ऊपर डालकर गुड़ाई करें या इथरल (12 मि.ली./हे.) 1000ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव एक घण्टा के अंदर अवश्य कर दें अन्यथा प्रभावकारी नहीं होगा।
2 पाला प्रभावित क्षेत्रों मेें गन्ने की सभी फसलों में सिंचाई करें।
3 बसन्तकालीन गन्ने की कटाई कदापि न करें। अपरिपक्व गन्ने में चीनी परता के साथ-साथ वजन भी कम होता है तथा तापमान कम होने के कारण पेड़ी में फुटाव भी कम होता है।
4 चीनी मिल में साफ एवं ताजे गन्ने की आपूर्ति करें।
5 शरदकाल में बोयी गयी गन्ने की फसल के साथ अन्तःफसल में सिंचाई के उपरान्त उर्वरक का प्रयोग करें।