गुड़ उत्पादन

गुड़ उत्पादन

भारतवर्ष में जबसे गन्ने का उत्पादन प्रारम्भ हुआ तभी से इसका उपयोग गुड़ उत्पादन के निमित्त किया जा रहा है। भारतीय वैदिक कालीन इतिहास में गन्ने की खेती एवं विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार के गुड़ के उपयोग के विषय में वर्णन आता है। सन् 1920 से पूर्व गन्ने की खेती केवल गुड़ एवं खाण्डसारी उद्योग के लिये ही की जाती थी। वर्तमान में हमारे देश में लगभग 80 लाख टन गुड़ विभिन्न रूपों में प्रतिवर्ष उत्पादित किया जाता है जिसकी लगभग 56 प्रतिशत मात्रा अकेले उ0प्र0 में ही बनाई जाती है। देश के अन्य प्रदेशों में भी गुड़ बड़े पैमाने पर उत्पादित किया जाता है। गुड़ हमारे भोजन का आवश्यक अंग होने के कारण यह वर्ष भर उपयोग किया जाता है। भोजन में यह शरीर को स्फूर्ति व शक्ति देने के साथ–साथ शरीर के पुराने तन्तुओं को बदलने वाला माना गया है। गुड़ औषधीय गुणों का भण्डार भी कहलाता है।

गुड़ का उत्पादन इतने बड़े पैमाने पर होता अवश्य है किन्तु गुड़ उत्पादकों में वैज्ञानिक तकनीकी जानकारी के अभाव में प्राय: अच्छे गुड़ का सदैव अभाव रहता है। फलत: बाजार में अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है और गुड़ भण्डारण में भी कठिनाई होती है।

उत्तम गुड़ के निर्धारित मानदण्ड

1. शर्करा 75- 85 प्रतिशत
2. नमी .. 05 प्रतिशत से कम
3. अघुलनशील अवशेष...... 03 प्रतिशत से कम
4. कलर रीडिंग..... 50 से 150 तक
5. खनिज लवण .. 03 प्रतिशत से कम
6. विघटित शर्करा 05 प्रतिशत से कम

गुड़ की ग्रेडिंग :

भौतिक एवं रासायनिक गुणों के आधार पर गुड़ की ग्रेडिंग की जाती है।

भौतिक गुण

भौतिक गुणों में गुड़ का रंग, गन्ध, स्वाद, रवा एवं कड़ापन आते हैं। गुड़ का रंग जितना अधिक साफ होगा, उसे उत्तम गुणवत्ता का माना जाता है। खाने के लिये तो अच्छा माना ही जाता है साथ ही उसमें शुद्धता भी अधिक होती है। हल्का पीलापन लिये हुये सुनहरे रंग का गुड़ भी उत्तम माना जाता है। रवेदार गुड़ को बिना रवा वाले गुड़ की अपेक्षा अच्छी क्वालिटी का माना जाता है। अधिक रवेदार गुड़ में मिठास भी अधिक होती है। गुड़ मे जितनी अधिक मिठास होगी उतना ही उसका स्वाद अच्छा होगा। ऊसर अथवा अधिक खाद दी गयी मृदाओं के गन्ने से जो गुड़ बनाया जाता है उसमें अधिक खनिज लवण होने के कारण गुड़ नमकीन हो जाता है। गुड़ में कड़ापन अथवा ढीलापन गुड़ में उपलब्ध नमी की मात्रा के अनुसार होता है। भण्डारण हेतु कड़े गुड़ को उसके टिकाऊपन स्वाद के कारण अधिक उपयुक्त माना जाता है। उत्तम क्वालिटी के गन्ने से बने ताजे गुड़ में अत्यन्त रुचिकर गन्ध होती है जबकि अधिक नमीयुक्त गुड़ को नमीयुक्त स्थान पर संग्रह करने पर उसमें अरुचिकर गन्ध आने लगती है।

रासायनिक गुण

रासायनिक गुणों के लिये गुड़ में शर्करा, कलर रीडिंग, नमी, विघटित शर्करा, राख आदि की उपस्थिति का अध्ययन किया जाता है। जिस गुड़ में कलर रीडिंग कम होगी, शर्करा की मात्रा अधिक होगी, नमी, विघटित शर्करा एवं राख की प्रतिशत कम होगी। ऐसा गुड़ उत्तम क्वालिटी का माना जाता है। गुड़ में नमी की मात्रा जितनी कम होगी उतनी ही उसके भण्डारण में स्थिरता आयेगी।

गुड़ के विभिन्न रूप

हमारे देश में गुड़ को मुख्यत: तीन रूपों में बनाया जाता है।

ठोस गुड़

कुल गुड़ उत्पादन का लगभग 75–80 प्रतिशत भाग ठोस रूप में बनाया जाता है। देश के विभिन्न भागों में ठोस गुड़ को विभिन्न आकारों जैसे भेला, भेली, लड्डू, खुरपा पाड़, चाकू इत्यादि में बनाया जाता है। इस विषय में किये गये शोध से प्राप्त परिणामों के निष्कर्ष स्वरूप ठोस गुड़ को ईंट के आकार का, साबुन की बट्टी के आकार का या फिर क्यूब के रूप में बनाया जाता है।

तरल गुड़

तरल गुड़ को राब या काकवी भी कहते हैं। चाशनी को ठोस गुड़ की अपेक्षा कम पकाकर (105 डिग्री से0ग्रे0 तापक्रम पर) उतार लेते हैं। खाण्डसारी बनाने के लिये पहले तरल गुड़ ही बनाया जाता है। तरल गुड़, ठोस गुड़ की तुलना में अधिक पौष्टिक होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसका उपयोग रोटी के साथ खाने में भी किया जाता है।

पाउडर गुड़

कुल गुड़ उत्पादन का लगभग 5 से 8 प्रतिशत भाग पाउडर गुड़ अथवा शक्कर के रूप में बनाया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहॉं चीनी की उपलब्धता में कठिनाई होती है वहॉं आज भी लोग पाउडर गुड़ का प्रयोग करते हैं। ठोस गुड़ की तुलना में इसकी कीपिंग क्वालिटी अधिक होने के कारण इसको अधिक पसंद किया जाता है। चाशनी को ठोस गुड़ की तुलना में कुछ अधिक (118–122 डिग्री से0ग्रे0 तापक्रम तक) पकाया जाता है।

गुड़ उत्पादन में गन्ने की जातियों का महत्व

साधारणतया किसी भी प्रजाति के गन्ने का गुड़ बनाया जा सकता है किन्तु गुड़ की मात्रा व गुणवत्ता की दृष्टि से प्रत्येक जाति समान नहीं होती है। कुछ जातियॉं ऐसी हैं जो गुड़ उत्पादन की दृष्टि से तो अच्छी होती हैं किन्तु उनसे निर्मित गुड़ की कीपिंग क्वालिटी कम होती है जबकि कुछ जातियॉं ऐसी भी हैं जिनसे गुड़ उत्पादन तो कम होता है किन्तु उनसे बना गुड़ अधिक स्वादिष्ट व भण्डारण हेतु अधिक उपयुक्त होता है। उ0प्र0 गन्ना शोध परिषद् द्वारा प्रदेश के विभिन्न अंचलों में उत्तम गुड़ उत्पादन हेतु उपयुक्त गन्ना प्रजातियों का चयन करने के उद्देश्य से विगत वर्षों में अनेक जातीय परीक्षण किये गये उसमें गुड़ न्यादर्श तैयार कर उनका भौतिक, रासायनिक विश्लेषण किया गया। गुड़ उत्पादन हेतु उपयुक्त गन्ना प्रजातियों के चयन की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। वर्तमान में जो प्रजातियॉं उत्तम गुड़ उत्पादन हेतु उपयुक्त पायी गयी हैं उनका विवरण निम्नवत् है :–

शीघ्र पकने वाली प्रजातियॉं

को0 0238,को0 0118,को0शा0 8436,को0शा0 88230, 96268,को0शा0 08272, को0से0 98231 एवं को0से0 01235, को0से0 03234 एवं यू0 पी0 05125

मध्य देर से पकने वाली प्रजातियॉं

को0शा0 767, 8432, 96269, 96275,97264, 98259, 99259,07250,08279 ,08276, यू0पी0 0097, को0से0 95422, को0से0 01434. गन्ना पेराई सत्र के प्रारम्भ में अर्थात सितम्बर के अन्त से नवम्बर तक की अवधि में यदि गुड़ बनाना हो तो शीघ्र पकने वाली प्रजातियों की सर्वप्रथम पेड़ी फिर शरद् गन्ना प्रयोग करना चाहिये। माह जनवरी से मार्च तक की अवधि में गुड़ बनाने हेतु मध्य देर से पकने वाली प्रजातियॉं गुड़ बनाने हेतु उपयुक्त समझी जाती हैं।

रस शोधन का महत्व

गन्ने के रस में अनेक प्रकार की अशुद्धियॉं मिली रहती हैं जिन्हें रस से अलग करना बहुत आवश्यक होता है। इसकी सफाई किये बिना उत्तम क्वालिटी का गुड़ नहीं बनाया जा सकता। गुड़ बनाने हेतु रस की सफाई में मुख्यत: दो प्रकार के रस शोधक प्रयोग किये जाते हैं।

वानस्पतिक रस शोधक

उत्तम क्वालिटी का गुड़ बनाने हेतु गन्ने के रस की सफाई वानस्पतिक रस शोधकों से ही करनी चाहिये जैसे देवला (150 ग्राम) या भिण्डी का पौधा (200 ग्राम) या सेमल/फालसा की छाल (250 ग्राम)। इनमें से किसी एक की निर्दिष्ट मात्रा को कूटकर, मसलकर 05 लीटर पानी में घोल बना लेना चाहिये। यह घोल 04 कुन्टल रस की सफाई हेतु पर्याप्त होता है।

रासायनिक रस शोधक

जहॉं तक सम्भव हो रासायनिक रस शोधकों के प्रयोग से बचना चाहिये क्योंकि इनका प्रयोग स्वास्थ्य के लिये हानिकारक तो होता ही है, इसका प्रयोग कर बनाये गये गुड़ की भण्डारण क्षमता भी घट जाती है। केवल अपरिहार्य परिस्थितियों में ही इनका संतुलित मात्रा में प्रयोग करना चाहिये। रासायनिक रस शोधकों में प्रमुख हैं–सोडियम हाइड्रोसल्फाइट (40–50 ग्राम), सोडियम बाई–कार्बोनेट (10–15 ग्राम), चूने का पानी आधा लीटर। यह मात्रा 04 कुन्टल रस की सफाई हेतु पर्याप्त होती है।

गुड़ बनाने की उन्नत विधि

स्वच्छ एवं ताजे गन्ने से निकाले गये रस को कपड़े से कढ़ाई में छानकर उसे उबलने हेतु भट्टी पर रख देना चाहिये। रस गर्म होने पर उसमें सनसनाहट की आवाज आना शुरू होती है जो कुछ समय बाद धीरे–धीरे बन्द होने लगती है। इसी समय रस मे विद्यमान नत्रजनीय पदार्थों का थक्का (मैली) रस की ऊपरी सतह पर तैरने लगता है जिसे छन्ने से उतार लिया जाता है। अब पहले से तैयार किये गये वानस्पतिक रसशोधक के घोल की कुछ मात्रा रस में डाल देते हैं, थोड़ी देर बाद मैली ऊपर आने लगती है जिसे पूर्व की भॉंति छन्ने से उतार लिया जाता है। अब भट्टी की आंच तेज कर देते हैं। इस प्रकार दो–तीन बार रसशोधक को रस में मिलाकर रस की खूब सफाई कर लेते हैं। कढ़ाई का रस जब गाढ़ा होने लगता है तो उसमें झाग बनने लगता है जिसके बाहर निकलकर गिरने की सम्भावना होती है जिसे नियंत्रित करने के लिये एक दो बूद अण्डी का तेल कढ़ाही में डाल देते हैं।

चाशनी उतारने का समय

चाशनी उतारने का समय गुड़ के प्रकार (रूप) पर निर्भर करता है। तीनों प्रकार (ठोस, तरल एवं पाउडर) के गुड़ हेतु अलग–अलग तापक्रम निर्धारित है अर्थात जिस प्रकार का गुड़ बनाना हो चाशनी को उसी तापक्रम पर उतारना चाहिये।

तरल गुड़ बनाना

चाशनी का तापक्रम जब 104 से 106 डिग्री से0ग्रे0 हो तो कढ़ाई को भट्टी से उतार लिया जाता है। ठण्डी होने पर उसमें 0.04 प्रतिशत साइट्रिक एसिड मिलाया जाता है। ऐसा करने से तरल गुड़ का रंग साफ हो जाता है साथ ही उसमें रबा बनने की सम्भावना भी नहीं रहती है। तरल गुड़ की भण्डारण क्षमता बढ़ाने, उसमें जीवाणु वृद्धि रोकने हेतु तरल गुड़ को बोतलों में पैक करने से पूर्व 0.1 प्रतिशत पोटैशियम मैटाबाईसल्फाइट अथवा 0.5 प्रतिशत बैंजोइक एसिड भी मिलाया जाना उचित रहता है।

ठोस गुड़ बनाना

चाशनी को 115–117 डिग्री0 से0ग्रे0 तापक्रम पर कढ़ाई को भट्टी से उतार लिया जाता है तथा थोड़ी देर रोककर उसे चाक में ट्रांसफर कर दिया जाता है फिर उसे लकड़ी के चट्टू से खूब चलाते हैं जिससे उसका रंग साफ हो जाता है। यदि गुड़ का रंग अधिक साफ करना हो तो उसे अधिक घोटना चाहिये और यदि गुड़ अधिक रबेदार बनाना हो तो कम घोटना अच्छा रहता है। गुड़ को जमने के पूर्व मनचाहा आकार देने हेतु उसे बाल्टी में, ईंट के सॉंचे में, क्यूब फ्रेम में, चौकोर भेली अथवा लड्डू बना लिये जाते हैं।

पाउडर गुड़ बनाना

चाशनी को 120–122 डिग्री से0ग्रे0 तापक्रम पर कढ़ाई को भट्टी से उतार लेते हैं और थोड़ा ठण्डा होने पर उसे चाक में ट्रांसफर कर देते हैं तथा रबा बनने के लिये उसे बिना घोटे छोड़ देते हैं। गुड़ जमना प्रारम्भ होते ही लकड़ी के स्क्रैपर से कूटकर चूर्ण बना लिया जाता है। इस चूर्ण को 1–3 मि0मी0 छिद्र युक्त छलनियों से छान लिया जाता है तथा चूर्ण में नमी का प्रतिशत 1 प्रतिशत रहने तक सुखाकर पॉलीथीन पैकेट्स में पैक कर लिया जाता है।

गुड़ भण्डारण

मानसून पूर्व गुड़ को भलीभॉति सुखाकर (गुड़ में नमी 5 प्रतिशत से कम रहने पर) पॉलिएस्टर फिल्म अथवा अल्काथीन में पैक करके भण्डार गृह में भण्डारित करना चाहिये। गुड़ को शीतगृह में पूर्णतया सुरक्षित रखा जा सकता है।गुड़ बनाते समय चाक में 2% सोंढ पाउडर मिलाने से गुड़ स्वादिष्ट होने के साथ साथ उसकी भण्डारण क्षमता बढ़ जाती है

गुड़ की खाद्यीय उपयोगिता

हमारे देश में, विशेषकर उ0प्र0 में गुड़ भोजन का एक महत्वपूर्ण अंग समझा जाता है। हमारे भारतीय समाज में हर मांगलिक अवसर पर गुड़ का प्रयोग किया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में अतिथि सत्कार में गुड़ व घी सम्पन्नता व शिष्टाचार का प्रतीक माना जाता है। नये प्रतिष्ठान का शुभ मुहूर्त, शादी–ब्याह या अन्य कोई मांगलिक अवसर हो तो गुड़ की उपस्थिति के बिना अनिवार्यता पूर्ण नहीं होती है। ग्रामीण अंचलों में पालतू पशुओं आदि को प्रसव काल के उपरान्त गुड़ खिलाने का रिवाज है ताकि माता पशु में दुग्ध संचय अधिक मात्रा में हो सके साथ ही प्रसव के दौरान ह्रास हुई ऊर्जा की क्षतिपूर्ति शीघ्र हो सके। गुड़ में वे समस्त पोषक तत्व पाये जाते हैं जो शरीर के मेन्टीनेन्स के लिये आवश्यक होते हैं। प्रोटीन शरीर के टूटे फूटे तन्तुओं की मरम्मत करता है, वसा शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। स्वास्थ्य के लिये आवश्यक कैल्शियम, आयरन तथा विटामिन बी0 भी गुड़ में विद्यमान रहता है। इसी कारण गुड़ की गणना प्रमुख स्वास्थ्यवर्धक पदार्थों में की जाती है।

गुड़ एवं चीनी में पाये जाने वाले प्रमुख पोषक तत्व

क्र0 सं0 मिठास का रूप सुक्रो ग्लूकोज प्रोटीन फैट कैल्शियम आयरन विटामिन बी
1. चीनी 99.00 - - - - 0.9 -
2. पाउडर गुड़ 60-70 05-09 0.4 0.9 1.2 1.2 -
3. ठोस गुड़ 50-60 05-15 0.4 0.1 0.8 1.1 -
4 तरल गुड़ 40-60 15-25 0.5 0.1 3.0 1.1 14 म्यू

गुड़ का औषधीय महत्व

आयुर्वेद में गुड़ को अत्यन्त लाभदायक, आयुवर्धक तथा शरीर को स्वस्थ रखने वाला बताया गया है। सश्रुत संहिता में गुड़ वात, पित्त नाशक, रक्तशोधक आदि गुणों के कारण वर्णित है। हरित संहिता में भी गुड़, क्षय, खॉंसी, क्षीणता तथा रक्त की कमी आदि रोगों में हितकारी बताया गया है। गुड़ के प्रमुख औषधीय गुण निम्नवत् हैं :–

1. गुड़ वातनाशक, मूत्रशोधक तथा धातुवर्धक होता है।
2. गुड़ को अदरक के साथ शुद्ध घी में पकाकर सेवन करने से सर्दी व खॉंसी में लाभप्रद होता है।
3. गुड़ पाचन शक्ति बढ़ाता है तथा भोजन को सुपाच्य बनाता है।
4. थोड़ा सा पुरानागुड़ खाने से रक्त शुद्ध होता है तथा गठियारोग में आराम मिलता है।
5. आयुर्वेदिक सीरप आदि बनाने में भी गुड़ का प्रयोग होता है।
6. गुड़ को दूध मे हल्दी के साथ मिलाकर पीने से शरीर का दर्द कम हो जाता है।
7. यूनानी पद्धति मे गुड़ को विभिन्न जड़ी–बूटियों के साथ मिलाकर औषधियॉं बनायी जाती हैं।